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द्वारकाधीश मंदिर में 52 गज की दो ध्वजा कब लगाते हे ?कया हे द्वारकाधीश मंदिर के ध्वजा का रहश्य क्लिक करके अभी जाने

Rojgar Market, June 13, 2023

आज बिपरजॉय चक्रवात गुजरात राज्य के निकट आ चूका हे तब द्वारकाधीश मंदिर के ऊपर एक नहीं बल्कि दो ध्वज लहराई गई हे तो जानते हे कब, कब दो ध्वज लहराते हे।।
ऐसा माना जाता हे गुजरात राज्य में चक्रवात या कोइ बड़ी आपत्ति आती हे तब दो ध्वज लगाते ह। एक साल पहले जब ताउते चक्रवात आया था तब दो ध्वज लहराई गई थी और चक्रवात की दिशा बदल गई थी और गुजरात को बड़े नुकसान से बचा दिया था तब से गुजरात के लोगो का भगवान द्वारकाधीश पर भरोषा हे।

Table of Contents

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    • द्वारकाधीश मंदिर पर 52 गज का ध्वज क्यों?
      • किसके पास हे ध्वजारोहण पर एकाधिकार ?
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द्वारकाधीश मंदिर पर 52 गज का ध्वज क्यों?

द्वारकाधीश मंदिर का ध्वज लहराता हुआ दूर दूर किलोमीटर तक दीखता हे और लोगो की मान्यता हे सिर्फ मंदिर का ध्वज देखने से दुःख दूर हो जाता हे और पुण्य मिलता हे। ५२ गज ध्वजा और कई मिथ हे की कुछ लोगों का मानना है कि द्वारकानगरी पर 56 प्रकार के यादवों का शासन था। उस समय सभी के अपने महल थे और सभी पर अपने-अपने ध्वज लगे थे। मुख्य भगवान कृष्ण, बलराम, अनिरुद्ध और प्रद्युम्न ये चार भगवानों के मंदिर अभी भी बने हुए हैं। जबकि बाकी के 52 प्रकार के यादवों के प्रतीक के रूप में भगवान द्वारकाधीश के मंदिर पर 52 गज का ध्वज फहराया जाता है।
एक और कहानी है कि 12 राशि, 27 नक्षत्र, 10 दिशाएं, सूर्य, चंद्र और श्री द्वारकाधीश मिलकर 52 होते हैं। एक और मान्यता है कि द्वारका में एक वक्त 52 द्वार थे। ये उसी का प्रतीक है। मंदिर के इस ध्वज के एक खास दर्जी ही सिलता है। जब ध्वज बदलने की प्रक्रिया होती है उस तरफ देखने की मनाही होती है।

किसके पास हे ध्वजारोहण पर एकाधिकार ?

द्वारकाधीश की मंगला आरती सुबह 7.30 बजे, श्रृंगार सुबह 10.30 बजे, इसके बाद सुबह 11.30 बजे, फिर संध्या आरती 7.45 बजे और शयन आरती 8.30 बजे होती है। इसी दौरान ध्वज चढ़ाया जाता है। मंदिर की पूजा आरती गुगली ब्राह्मण करवाते हैं। पूजा के बाद ध्वज द्वारका के अबोटी ब्राह्मण चढ़ाते हैं।

ध्वज बदलने के लिए एक बड़ी सेरेमनी होती है। जो परिवार ध्वज को स्पॉन्सर कर रहा है वो नाचते गाते हुए आते हैं। उनके हाथ में ध्वज होता है। इसे भगवान को समर्पित किया जाता है। वहां से अबोटी ब्राह्मण इसे लेकर ऊपर जाते हैं और ध्वज बदल देते हैं। नया ध्वज चढ़ाने के बाद पुराने ध्वज पर अबोटी ब्राह्मणों का हक होता है। इसके कपड़े से भगवान के वस्त्र वगैरह बनाए जाते हैं।

 

 

 

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